नैनीताल/देहरादून। जोशीमठ भू धंसाव पर हाईकोर्ट का एक बड़ा फैसला सामने आया है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जोशीमठ क्षेत्र में चल रहे सभी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण और विस्फोट करने पर तत्काल रोक लगा दी है। निष्पक्ष विशेषज्ञों से जांच कराने के निर्देश दिए हैं। सरकार व जल विद्युत परियोजना कंपनियों की ओर से यह कहा गया कि उनके द्वारा वर्तमान में निर्माण या विस्फोट नही किया जा रहा है। उनकी इस बात का नोट बनाते हुए उच्च न्यायालय ने पुनः यह स्पष्ट कर दिशा निर्देश दिए की वहां कोई निर्माण न हो और साथ ही साथ एक स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति बनाई जाय। सभी विशेषज्ञों की रिपोर्ट को एक बंद लिफाफे में उच्च न्यायालय के समक्ष रिपोर्ट करने के लिए कहा है और मामले को अगली सुनवाई 2 माह बाद लगाई है।
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष और अधिवक्ता पी सी तिवारी की ओर से 2021 की लंबित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने जोशीमठ में हो रहे प्रकरण पर महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए हैं। पीसी तिवारी ने बताया कि नंदा देवी बायोस्फेयर में ही पूर्व में 7 फरवरी 2021 को, ग्लेशियर के टूटने की घटना हुई थी जिसके बाद, पी सी तिवारी की जनहित याचिका उच्च न्यायालय में दायर की गई। जिसने उनके द्वारा अर्ली वार्निंग सिस्टम, असंतुलित विकास को रोकने संबंधी दिशा निर्देश उच्च न्यायालय से चाहे गए। इस याचिका के लंबित रहते हुए, जोशीमठ भू धंसाव के बाद पुनः उनकी अधिवक्ता, स्निग्धा तिवारी ने कोर्ट से अंतरिम निवेदन यह किया कि जोशीमठ में हो रहे भूस्खलन और दरारों की वजह से 700 से ज्यादा मकान चपेट में आ गए है। शहर की आबादी पर बहुत गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
वहां के लोगो की पीड़ा को आवाज देते हुए स्निग्धा की ओर से यह तर्क दिया गया कि वर्ष 1976 में ही मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट हो गई थी कि जोशीमठ शहर भूस्खलन के क्षेत्र में बना हुआ है। और इसीलिए प्राकृतिक रूप से संवेदनशील है। इसके उपरांत 2010 में पुनः विशेषज्ञों द्वारा यह आगाह किया गया था कि जोशीमठ क्षेत्र में बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं का संचालन नही होना चाहिए परंतु उनकी किसी ने नहीं सुनी और वर्तमान में प्रभाव सबके सामने है।